Thursday, March 22, 2018

History of Ramnavami at Hazaribag

हजारीबाग की ख्यातिप्राप्त रामनवमी का हुआ 100 साल
1918 में गुरूसहाय ठाकुर ने 5 लोगों के साथ निकाला था जुलूस

हजारीबाग की ख्यातिप्राप्त रामनवमी के 100 साल पूरे होने को हैं। पहली बार 1918 में स्व गुरूसहाय ठाकुर ने अपने 5 मित्रों के साथ रामनवमी का जुलूस निकाला था। तब से लेकर आज तक हजारीबाग की ख्यातिप्राप्त रामनवमी में आमूल-चूल परिवर्तन देखे जा सकते हैं। न केवल पुराने रामनवमी मार्ग में थोड़े से बदलाव आए हैं, बल्कि इसके स्वरूप में भी परिवर्तन आया है। वर्षों और दषकों तक गगनचुंबी झंडा इस रामनवमी की पहचान थी। आज के समय में कुछ क्लबों को छोड़ दें तो गगनचुंबी झंडों के स्थान पर अत्याधुनिक व भव्य झांकियों ने स्थान ले लिया है। जीवंत झांकियों के साथ-साथ अत्याधुनिक नक्कासीदार व एलईडी बल्बों से सजी झांकियां रामनवमी के जुलूस में देखी जाती हैं। कभी ढोल-ढाक के साथ जुलूस निकाला जाता था, तो आज डीजे रामनवमी की पहचान बन गई है। समय के साथ भी परिवर्तन दिख रहा है। दषकों तक या यूं कहें 1989 तक रामनवमी का जुलूस नवमी की शाम 8 बजे तक परंपरागत सुभाष मार्ग से गुजरकर कर्जन ग्राउंउ में झंडा मिलान करते हुए वापस अपने अखाड़ों तक पहुंच जाता था, लेकिन आज नवमी को अपने मुहल्ले में एवं दषमी को देर रात्रि निकलकर परंपरागत सुभाष मार्ग से एकादषी के रात्रि 8 बजे तक गुजरकर संपन्न होता है। इतना ही नहीं सुरक्षा को देखते हुए भी कई तरह के बदलाव आए हैं। इस प्रकार 100 साल की हजारीबाग की ख्यातिप्राप्त रामनवमी के स्वरूप में करीब-करीब बहुत कुछ बदल गया है। नहीं बदला है तो लोगों का भक्तिभाव व नारा। आज भी जय श्री राम, हर हर महादेव, भारत की माता जय और वंदे मातरम् जैसे नारे गूंजते हैं।
.... ऐसे हुई रामनवमी की शुरूआत
पंच मंदिर का निर्माण 1900 ई में पूर्ण हुआ था। 1901 से प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही यहां पूजा अर्चना प्रारंभ हुआ। 1905 में पंच मंदिर के लिए चांदी जड़ा नीले रंग का ध्वज बनारस से मंगवाया गया था। मंदिर में ही ध्वज को रखकर पूजा अर्चना की जाती थी। बताया जाता है कि स्व गुरूसहाय ठाकुर इस ध्वज को लेकर शहर में जुलूस निकालना चाहते थे, लेकिन पंच मंदिर की संस्थापक मैदा कुंवरी के देवर रघुनाथ बाबू ने इसकी इजाजत नहीं दी। इजाजत नहीं मिलने के बाद स्व गुरूसहाय ठाकुर ने 1918 में 5 लोगों के साथ मिलकर रामनवमी जुलूस पहली बार निकाला। लोग बताते हैं कि इसके बाद रामनवमी जुलूस में चांदी जड़ा नीले रंग का ध्वज भी निकालकर शहर में घुमाया गया। इस प्रकार हजारीबाग में रामनवमी की शुरूआत हो गई।

4 दशक बाद गांवों का जुलूस शामिल हुआ

हजारीबाग की ख्यातिप्राप्त रामनवमी के प्रारंभ होने के करीब 4 दशक बाद गांव का जुलूस भी शामिल होने लगा। 1954-55 में गांव के जुलूस शहर आने लगे। नावाडीह, कदमा, पबरा सहित कई अन्य गांवों का झंडा जुलूस भी रामनवमी में शामिल होने लगा है। गांवों का झंडा शामिल होने से इस जुलूस का आकार बढ़ गया। जुलूस का आकार बढ़ने पर इसके संचालन की महती जिम्मेवारी महसूस की जाने लगी। यही कारण है कि रामनवमी जुलूस के संचालन के लिए श्री श्री चैत्र रामनवमी महासमिति का गठन किया जाने लगा। 60 के दषक में स्व हीरालाल महाजन ने हाथी पर चढ़कर न केवल जुलूस का नेतृत्व किया बल्कि इसका संचालन भी किया। इन्हीं वर्षों में जिला प्रषासन रामनवमी के जुलूस पर नजर रखने का काम घोड़ा पर सवार होकर करता था। तब स्व हीरालाल महाजन एवं स्व पांचू गोप जैसे लोगों ने इसका नेतृत्व कर इसे बेहतर रूप देने का प्रयास किया।

1965 में निकला पहली बार मंगला जुलूस

महावीर मंडल के पूर्व सदस्य सह कदमा निवासी अषोक सिंह बताते हैं कि पहली बार 1965 में मंगला जुलूस निकाला गया था। श्री सिंह बताते हैं कि रामविलास खंडेलवाल की माॅनीटरिंग में 10-11 लोगों ने मंगला जुलूस निकाला। मंगला जुलूस निकालने वालों में श्यामसुंदर खंडेलवाल, आरके स्टूडियो के संचालक प्रकाषचंद्र रामा, अषोक सिंह, रवि मिश्रा, कालो राम, अरूण सिंह, वरूण सिंह, पांडे गोप, बड़ी बाजार के गुप्ता जी शामिल थे। बताया गया कि बड़ा अखाड़ा से जुलूस निकालकर बजरंग बली मंदिर में लंगोटा चढ़ाजा जाता था। बाद में पूर्व जिप अध्यक्ष ब्रजकिषोर जायसवाल, गणेष सोनी, ग्वालटोली चैक के अर्जुन गोप आदि ने महावीर मंडल का कमान संभाला था।

सांप्रदायिक एकता की मिशाल

कदमा के अषोक सिंह एवं प्रदीप सिंह बताते हैं कि पहले रामनवमी सांप्रदायिक एकता की मिषाल हुआ करता था। अधिवक्ता बीजेड खान के पिता स्व कादिर बख्स सुभाष मार्ग में जामा मस्जिद के समक्ष बैठकर जुलूस में शामिल लोगों का स्वागत करते थे। इतना ही नहीं, मुहर्रम भी सांप्रदायिक एकता की मिषाल बना करता था। कस्तूरीखाप के झरी सिंह छड़वा डैम मैदान में मुहर्रम मेला के खलीफा हुआ करते थे। वही विभिन्न अखाड़ों के झंडा और निषान लोगों से मिलकर तय करते थे। यह भी बताया गया कि रामनवमी के स्वरूप को बेहतर बनाने में कन्हाई गोप, टीभर गोप, जगदेव यादव, धनुषधारी सिंह, भुन्नू बाबू, डाॅ शंभूनाथ राय आदि की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी।

1970 के दशक में तासा का प्रयोग

हजारीबाग की ख्यातिप्राप्त रामनवमी के इतिहास में 1970 का दषक एक बड़ा बदलाव लेकर आया। इन्हीं वर्षों में रामनवमी के जुलूस में तासा का प्रयोग किया जाने लगा। बाॅडम बाजार ग्वालटोली समिति ने अपने जुलूस में पहली बार तासा पार्टी का प्रयोग किया और बाद में सभी अखाड़ों द्वारा इसका प्रयोग किया जाने लगा। तासा पार्टी, बैंड पार्टी व बांसुरी की धुन रामनवमी के जुलूस में झारखंड बनने तक जारी रहा। 90 के दषक में ही तासा के साथ-साथ डीजे ने भी स्थान ले लिया है। डीजे पर बजने वाले गीत व फास्ट म्यूजिक युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं। हालांकि डीजे लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसके सीमित प्रयोग का निर्देष दिया है। अब युवा डीजे की धुन पर न केवल नाचते हैं बल्कि तलवार, भाला, गंड़ासा, लाठी के संचालन को भी प्रदर्षित करते हैं।

झांकी का प्रयोग मल्लाहटोली से

हजारीबाग की ख्यातिप्राप्त रामनवमी में झांकियों का प्रयोग 70 के दषक में मल्लाहटोली ने प्रारंभ किया। मल्लाहटोली क्लब द्वारा तब जीवंत झांकियों का प्रदर्षन किया जाता था। रामायण के अंष को लेकर उसी पर आधारित झांकियां प्रस्तुत की जाती थी। बाद में कई अन्य अखाड़ों द्वारा झांकियों का प्रयोग किया जाने लगा। अब तो थर्मोकोल से लेकर अन्य सामग्रियों से देष के भव्य मंदिरों व इमारतों के साथ-साथ समसामयिक घटनाओं पर आधारित भव्य झांकियों को प्रदर्षित किया जाता है। करीब 100 झाकियों वाले जुलूस में आधार दर्जन से अधिक झांकियां अभी भी जीवंत देखी जा सकती हैं।